चंदेलकालीन शिव मंदिरो पर यदि आपने देखा हो तोह एक अजीब तरह की चित्रकारी देखने को मिलती है। आखिर इसकी क्या आवशयकता थी? क्या इसके पीछे भोग और योग को एक करने का कोई आध्यात्मिक कारण था या फिर बाहरी आक्रमणकारियों से मंदिर को सुरक्षित बनाने की कोई गहरी योजना? पर मंदिरो पर सम्भोग के चित्र बनाकर मंदिरो की रक्षा कैसे की जा सकती होगी?
तोह आइयें हम प्रयागराज और चित्रकूट की सीमा पर बने मंदिरो के बारे में जानकारी ग्रहण करते है और इस चित्रकारी के रहस्यों को सुलझाने की कोशिश करते है?
ऋषियन आश्रम चित्रकूट, मंदिरो के शिवलिंग कहा गायब है?
प्रयागराज से 44 किलोमीटर दूर है गढ़वा का किला, जिसके अंदर है सैकड़ो साल पुराना एक शिव मंदिर। लेकिन इस मंदिर के भीतर एक चीज़ गायब है, इसका शिवलिंग। यहाँ से 16 किलोमीटर दूर है यमुना नदी के किनारे बरहकोतरा गांव । यहाँ भी ठीक वैसा ही शिव मंदिर है। लीओन इसके भीतर शिव लिंग मौजूद है, हालांकि मंदिर को बनाते समय जो शिवलिंग रखा गया था यह वो शिवलिंग नहीं है, यहाँ से भी वो शिवलिंग गायब है।
यहाँ से लगभग 2 किलोमीटर दूर पहाड़ी जंगलों में स्थित है, ऋषियन आश्रम (Rishiyan Ashram)। यहाँ पर भी 2 मंदिर मौजूद है, इनका भी गर्भ गृह खाली है, मंदिरो को देखकर ऐसा लगता है की इन्हे भी तोडा गया था, लेकिन बाद में मंदिरो के पथ्थरो को जोड़कर इनका ढांचा फिर से तैयार किया गया है, लेकिन शिवलिंग कहा है? यहाँ से भी शिवलिंग गायब है?
इस रहस्य को सुलझाने के लिए आपको प्राणबाबा आश्रम के बारे में जानना होगा। पहाड़ी जंगलो के बीच एक जलकुंड के किनारे शिव की प्रतिमा मौजूद है। पहले याहं पर भी काफी पुराना शिव मंदिर हुआ करता था। लेकिन मंदिर के खंडित होने से पहले उस शिवलिंग को भी निकाल लिया गया। अभी यहाँ पर जो शिवलिंग है जो की बाद में स्थापित किया गया था। आखिर शिवलिंग गया कहाँ?
इस पहेली को सुलझाने के लिए आपको प्राणबाबा आश्रम से भी 30 किलोमीटर दूर स्थित रामनगर में 50 बीघे में फैली हुई झील के किनारे पत्थरो से बना हुआ काफी पुराना मंदिर दिखाई पड़ता है, इसकी बनावट बरहकोतदा गांव में मौजूद शिव मंदिर के सामान है, लेकिन इस मंदिर की हालत भी बाकी दोपनो मंदिरो के जैसे है। आज इस मंदिर के गर्भ गृह में जो शिवलिंग दिखाई देता है वह मूल शिवलिंग नहीं है। मंदिर की हालत देखकर लगता है की इस मंदिर में भी भयानक तोड़ फोड़ की गयी थी । प्रांगण में भिखरे हुए अवशेषों के बिच एक मूर्ति ध्यान खींच लेते है, एक जैन प्रतिमा।
इन सभी मंदिर से शिवलिंग कहा गायब है इन सवालों के जवाब मिलेंगे एक गुफा से।
कैसे पहुंचे सारे मंदिरो के शिवलिंग इस गुफा तक?
इन सवालो के जवाब सब ऋषियन आश्रम में छिपे है । घने जंगलो के पिच बेस ऋषियन आश्रम के पास 2 गुफाये है जिनमे से 1 गुफा बिलकुल खाली पड़ी है और दूसरी गुफा में आपको मिलेंगे बहुत सारे शिवलिंग। इन शिवलिंगो को यहाँ पर क्यों लाया गया? ये शिवलिंग यहाँ तक कैसे पहुंचे ? इन सभी सवालों के जवाब मिलेंगे हमें ऋषियन इतिहास से।
ऋषियन आश्रम चित्रकूट का इतिहास
वैदिक काल में इस जगह पर यहाँ पर ऋषियों का आश्रम हुआ करता था। इससे ही इस स्थान का नाम पड़ा ऋषियन। यहाँ रहने वाले ऋषि शिव जी की उपासना करते थे । नाम को लेकर एक और बात है की सैकड़ो साल पहले यहाँ के जंगलों में बड़े आकर के रीछ यानि भालू पाए थे यही से इसका नाम पड़ा रीछ वन जिसका उच्चारण धीरे धीरे ऋषियन में बदल गया। इन स्थानों के महत्व को समझाएं के लिए इसकी पौराणिक कथा जानने की जरुरत है ।
रामचरित मानस के अनुसार श्री राम चित्रकूट जाते समय इसी मार्ग से होकर गए थे। एक और कथा के अनुसार बाणासुर नमक असुर ने यही पर भगवन शिव की तपस्या की थी जिसकी माँ बारहा के नाम पर इस जगह का नाम पैसा बरहकोतदा।
1000 ईस्वी के पश्चात जब यहाँ पर चन्देरो का अधिकार हुआ, ये जगह महत्वपूर्ण बन गयी। यहाँ कुछ ऐसे काले पत्थर पाए जाते थे जिनसे शिवलिंग का निर्माण किया जाता था। यह गुफाये पहले अस्तित्व में नहीं थी बल्कि पथ्थरो को काटने के कारन इनका निर्माण हुआ। जो पथ्थर काटे जाते उनसे ही शिवलिंग का निर्माण होता। चन्देलों ने जब जगह जगह शिव मंदिरो को बनवाया तोह शिव लिंगो के निर्माण के लिए यही से विशेष काले पथ्थर मंगवाए जाते थे, परन्तु ऐसा क्या हुआ की इन शिवलिंगो को वापस भेजना पड़ा।
इसके लिए हमें चन्देरो का इतिहास गहरायी से जानना होगा
चन्देरो का इतिहास
बुन्देल खंड chetra पर 835 से लेकर 1315 के बीच लगभग 480 सालो तक पहले राजा नानुका से लेकर वीर वर्मन तक 23 राजाओ ने राज्य किया। चन्देलों की राजधानी पहले खजराहो थी , जिसे बाद में महुआ में हस्तांतरित कर दिया गया। 925 से 950 के बीच यशो वर्मन के कार्यकाल में चंदेल साम्राज्य का काफी विस्तार हुआ, जो कालिंजर से लेकर यमुना नदी के किनारे विंद्या पर्वत की श्रंखलाओ तक जा पंहुचा। 1003 को चंदेल राजा गंडदेव का पुत्र विद्याधर खजराहो की गद्दी पर बैठा।
1018 ईस्वी से लेकर 1022 के बीच मेहमूद गजनी ने भारत के अलग अलग प्रांतो पर कई बार आक्रमण किये। जिसमे चंदेल के अधिकार में आने वाला कन्नौज, कालिंजर और ग्वालियर जैसे चैत्र भी शामिल थे। विद्याधर ने मेहमूद गजनवी के इस आक्रमण का जितना संभव हो सका विरोध किया, इसके बावजूद भी उसने खुलकर लूट पात की और गजनी वापस लौट गया । यही से खजराहो से लेकर जहा तक चंदेल साम्राज्य फैला था, बड़ी तेजी से शिव मंदिरो का निर्माण कार्य शुरू हुआ। बाहरी आक्रमणकारियों से साम्राज्य की रक्षा करने के लिए नयी राण निति विकसित की गयी। मंदिर अक्सर वही बनाये जाते थे, जिसके आस पास कोई गांव हो।
उद्देश्य सिर्फ एक था की हर गांव में एक छोटई सेना होनी चाहिए जो खुद अपने और मंदिर की रक्षा कर सके। शिव मंदिर सिर्फ आस्था का केंद्र नहीं थे बल्कि यही पर गांव के नौजवान लड़को को युद्ध का परीक्षण भी दिया जाने लगा। ऐसे ही मंदिरो में चलने वाले युद्ध चैत्र से पैदा हुए 2 महान योद्धा – आल्हा और उदल । हर्षवर्मन से लेकर परमर्दि देव तक कई महान चंदेल राजा पैदा हुए। जिनके समय में मंदिरो का महत्व और कार्यशैली लगातार बढ़ती गयी।
चंदेल राज्य में मंदिरो का महत्व
1.राजा का अधिकार चैत्र- किसे चैत्र विशेष पर अपना अधिकार जताने के लिए चंदेल वहां पर मुख्या रूप से शिव मंदिरो की स्थापना करते थे । यह मंदिर उनके अधिकार चैत्र का प्रतिक हुआ करता था।
2.स्वेच्छा से दिए हुए दान से कर इकठ्ठा करना। मंदिरो का दूसरा मुख्या कार्य था, आस पास के चैत्र से कर इकठ्ठा करना, मगर ये कर लोगों द्वारा दान के रूप में स्वेछा से दिया जाता था, जिसका एक हिस्सा राजकोष में और बाकि कर से यारत्रियों के लिए मार्गो का निर्माण, जगह जगह जलाशय का निर्माण, फलदार और छाया देने वाले वृक्षों का रोपण आदि किये जाते थे।
3.यात्रियों के लिए भोजन और सोने की सुविधा- मंदिरो की तीसरी सबसे महत्वपूर्ण भूमिका थी। यात्रियों के निवास के लिए, पैदल यात्री या घुड़सवार जब भी लम्बी यात्रा के लिए निकलते थे, तोह इन्ही मंदिरो में उनके रुकने, रहने, खाने की व्यवस्था होती थी, जो राजा के सैनिको के लिए मुफ्त और बाकि लोगो के लिए बहुत कम शुल्क लेकर उपलब्ध कराई जाती थी, यानी शिव मंदिर धर्मशाला और भोजनालय की भी भूमिका निभाते थे।
4.गांव से जुडी हुई समस्याओं की सभा- यह ग्राम सभाओ के रूप में भी काम किया करते थे। गांव से जुडी हुई कोई भी समस्या राजा तक पहुंचने के लिए यहाँ समय समय पर चर्चा की जाती थी और उन समस्याओ से राजा को शीघ्र अतिशीघ्र अवगत कराया जाता था। यानी यह मंदिर ग्राम सभा के मंच के रूप में भी कार्य करते थे।
5. लोगों एवं जानवरो के लिए जल की व्यवस्था- मंदिर के निर्माण से पहले इस बात का विशेष ध्यान दिया जाता था की वहां पर पानी की आवश्यकता को पूरा करने के लिए या तो पहले से ही जलाशय मौजूद हो या फिर मंदिर के पास ही जलाशय का निर्माण किया जाता था, ताकि लोगों को पानी की समस्या का सामना न करना पड़े। यानी मंदिर भी आस पास के लोगों के लिए जल आपूर्ति का केंद्र हुआ करते थे।
6. बीमार लोगों के इलाज करने की व्यवस्था- किसे अछूत बीमारी के फैलने पर जैसे छोटी माता, चेचक, डेंगू, मलेरिया, हैजा आदि के समय ये मंदिर लोगो को आश्रय दिया करते थे और मंदिर में बताये गए विधि विधान का पालन करते हुए ठीक होने तक उन्हें उसी प्रक्रिया से होकर गुजरना पड़ता था। जिसमे उपवास और औषधि का सेवन, पूजा पाठ, यज्ञ, हवन आदि चीज़े शामिल थी, यानी ये मंदिर चिकित्सालय के रूप में भी काम करते थे।
7. सांख्यकीये आकड़ो का लेखा जोखा- शादी, मुंडन, गांव की जनसँख्या, बच्चे का नामकरण, जानवर, खेती की जमीन इन सस्बका लेखा जोखा मंदिरो के पास हुआ करता था। यह मंदिर मर्रिज हॉल और सांख्यकीय आकड़ो के दफ्तर के रूप में भी कार्य किया करते थे।
8. अंतिम संस्कार का प्रबंध करना – लोगों केमरने के बाद उनका अंतिम संस्कार कहा और किस प्रक्रिया से करना है ये भी मंदिर ही तय करते थे। समशान के लिए भूमि भी मंदिर द्वारा तय कराई जाती थी।
9. न्याय एवं दंड देने की शक्ति – इससे भी भड़कर मंदिरों के पास किसे व्यक्ति को राजा की तरफ से तत्काल दंड देने का प्रावदान भी था। मंदिर में मौजूद पुजारियों का एक समूह नयायधीश की तरह काम करता था, जिनके सामने दोनों पक्ष अपनी बात रखते थे, लेकिन अंतिम निर्णय इन पुजारियों का ही हुआ करता था, किन्तु मृत्यु दंड जैसे कोई चीज़ नहीं होती थी, किन्तु दंड का एक अनोखा प्रावधान यह था की तालाब से पानी लाकर शिव जी पर चढ़ाना होता था और अपने अपराध की शमा मांगनी होती थी, यह प्रक्रिया कितनी बार करनी है ये भी पंडित ही तय किया करते थे।
10. नियमो को बदलने और बेहतर बनाने की शक्ति- मंदिरो में लोगो की इतनी गहरी आस्था हो जाती थी की किसे भी हाल में वह रोज मंदिर आकर पूजा आराधना करते थे इसीलिए मंदिर के पुजारियों द्वारा मंदिर में प्रवेश के नियम और कानून बनाये जाते थे। इन नियमो में आवश्यकता पड़ने पर बदलाव भी करते थे।
11. प्रतिबद्ध लगाने की शक्ति– क्युकी मंदिर अहिंसा को परमधर्म मानते थे। इसीलिए ऐसे लोगों का मंदिरों में आना वर्जित था, जो जानवरो को मारकर कर उसकी खाल, मांस, हड्डी से जुड़ा हुआ कार्य करते थे। किसान, कुम्हार, बड़ाई, मूर्तिकार आदि अन्य कार्य करने वाले लोगो को मंदिर में आने जाने का पूरा अधिकार था।
12. गुरुकुल में युधा का प्रशिक्षण – सुबह के समय में इन मंदिरो में संस्कृत एवं वेद पुराणों की शिक्षा दी जाती थी और शाम के समय नवयुवको को युद्ध का प्रशिक्षण दिया जाता था ताकि, आवशयकता पड़ने पर बाहरी आक्रमणकारियों से इन मंदिरो की सुरक्षा स्वयं की जा सके, क्युकी मंदिरो में काफी मात्रा में दान से इकठ्ठा किया हुआ अनाज, आभूषण और स्वर्ण मुद्रा मौजूद होती थी। युद्ध में निपुणता हासिल करने के बाद यह राजा की सेना में भर्ती होते थे, मंदिर की सुरक्षा के लिए शिव सैनिक की विशेष उपाधि दी जाती थी।
13. शिव सैनिको का सम्मान- एक मत के अनुसार इन शिव सैनिको के द्वारा विशेष प्रशिक्षण पूरा किये जाने के बाद इन्हे खजराहो के मंदिरों में आमंत्रित किया जाता था, भोग का परम आनंद लेने के लिए, ताकि ये वासना की तृप्ति पाकर विपत्ति के समय मंदिरो की रक्षा करते हुए अपने प्राणो का भी बलिदान कर सके, हलाकि विशेषज्ञों का सिर्फ अनुमान है जिसकी प्रमाणिकता के कोई साबुत नहीं है।
14. शिवलिंगो के रक्षक- शिव मंदिरो के रक्षा करने का एक विशेष नियम था। आक्रमण होने की अवस्था में सबसे पहले शिव सैनिको को राजधानी तक सन्देश ले जाना पड़ता था। सन्देश को भेजने और राजा का आदेश मिलने तक मंदिरो में मौजूद सभी आभूषण और कीमती सामान हटा लिए जाते थे। ऐसा माना जाता था की प्राण प्रतिष्ठित शिव लिंग के नष्ट होने पर साम्राज्य का विनाश होता है। इसीलिए आक्रमण होने पर शिव लिंगो को गुप्त स्थान पर रख दिया जाता था जैसे ऋषियन।
15. जैन परम्परा का प्रभाव- मानव इतिहास में एक ऐसा डोर भी आया जब जैन परम्परा के प्रभाव में आकर लोग वासना को पाप मैंने लगे थे। जैन की दिगंबर शाखा का कई चंदेल शाशको ने प्रचार प्रसार किया जिसमे ब्रह्मचर्य का पालन करना अनिवार्य था। ब्रमचर्य के द्वारा शिव की साधना करने के लिए जैन प्रतिमा भी स्थापित की जाती थी। इस सिद्धांत के अनुसार जब जैन धर्म के प्रभाव में आकर चंदेल राज्य के बहुत सरे लोगों ने भ्रम्चार्य अपना लिया, तो साम्राज्य को बाहरी आक्रमणकारियों से बचने के लिए सेना में भर्ती हेतु लोग बहुत ही कम रह गए। इसीलिए लोगो में फिर से काम वासना जाग्रत करने के लिए इस तरह के मंदिरो का निर्माण किया गया।
न मेहमूद गजनी चंदेल पर आक्रमण करता न ही चन्देलों के शिव मंदिर तोड़े जाते।
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