क्या है कोणार्क मंदिर के रहस्यमयी राज:– सूर्य देव के सम्मान में बना एक भव्य मंदिर, एक ऐसा मंदिर जिसमे कभी सूर्य भगवन की हवा में तैरती मूर्ति हुआ करती थी। एक ऐसा मंदिर जिसने ब्रिटिश सर्कार के भी होश उदा दिए थे। आज भी अगर देखा जाये तो इस मंदिर की बनावट बहुत सुन्दर है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है की यह मंदिर श्री कृष्णा के पुत्र ने बनवाया था। परन्तु आज यह मंदिर सिर्फ यूनेस्को विश्व विरासत की श्रेणी में शामिल हो गया है, जो की एक वीरान जंगल में टूटी ईमारत के रूप में इस्थापित है।
क्या है कोणार्क मंदिर के रहस्यमयी राज?
उड़ीसा के ” पूरी ” शहर से कुछ किलोमीटर दूर एक छोटा सा शहर है ” कोणार्क “, इस जगह आपको समुद्र के किनारे पत्थरो से बना एक भव्य मंदिर दिखेगा। जैसे ही आप इस मंदिर के प्रवेश द्वार पर पहुंचेंगे तोह आपको एक मूर्ति देखने को मिलेगी जो की बहुत ही अनोखे रूप में बानी हुई है।
इस मूर्ति में आप देखेंगे एक हठी जो की शेर को दबा का बैठा है और शेर एक इंसान को दबा कर बैठा है। वह के लोगों का मानना है की ये शेर इंसान के घमंड को दर्शाता है और हठी इंसान की संपत्ति और पैसे को दर्शाता है। इन मूर्तियों को बनाने का उद्देश्य है की लोग अपनी बुरी आदतों को समझे की कैसे इंसान अपने घमंड और पैसे, संपत्ति के लालच में दबा जा रहा है। यह मूर्ति दर्शाती है की यदि इन दोनों चीजों की लत आग जाये तोह इंसान की जिंदगी ख़त्म हो जाती है।
” कोणार्क ” मंदिर का निर्माण किसने करवाया?
ऐसा कहा जाता है की पूर्व गंगा वंश के राजा नर्सिंगहा देव प्रथम ने कोणार्क का यह सबसे पहला सूर्य मंदिर 1244 सी इ में बनवाया था।
लेकिन साम पुराण की एक कहानी के अनुसार इस मंदिर को श्रीकृष्ण के पुत्र साम ने बनवाया था। साम श्रीकृष्ण और जामवती के पुत्र थे। श्रीकृष्ण के पुत्र बहुत शरारती थे। श्रीकृष्ण अपने पुत्र के बुरे व्यवहार से बहुत ज्यादा परेशान थे। देखते देखते साम का बुरा व्यवहार इतना बढ़ गया था की श्रीकृष्ण के क्रोध की सारी हदे ही पार हो गयी। श्री कृष्णा ने उन्हें समझने की बहुत कोशिश की, परन्तु साम समझने को तैयार ही नहीं थे।
श्री कृष्णा को अपने दपुत्र का ऐसा बर्ताव स्वीकार नहीं था। तोह बहुत क्रोधित हो गए और साम को दंड देने के लिए उन्होंने उन्हें एक भीषण श्राप दे दिया। उन्होंने कहा की साम को कुष्ठ रोग हो जायेगा ऐसी बीमारी जिसमे शरीर में फोड़े हो जाते है, शरीर के अंग सुन्न पड़ने लग जाते है।
श्री कृष्णा के श्राप के कारण साम को एक लम्बे समय तक दर्द सहना पड़ा। कई साल बीत गए, साम अपने बुरे व्यवहार की सजा भुगतते रहे और एक दिन उनकी मुलाकात ऋषि कटक से हुई। ऋषि कटक को उनकी हालत देखकर दया आ गयी। उन्होंने साम को सूर्य भगवन की भक्ति करने की सलाह दी और कहा की उन्हें 12 साल तक कड़ी तपस्या करनी पड़ेगी।
साम ने ऋषि कटक की बात मानकर चन्द्रमाँगा नदी के किनारे मित्र वन में 12 साल तक तपस्या की । सूर्य भगवन उनकी तपस्या से प्रसन्न हो गए। उन्होंने साम को आशीर्वाद दिया। उस आशीर्वाद से साम की बीमारी दूर हो गयी। उन्होंने सूर्य देव को धन्यवाद् देते हुए वचन दिया की वो उनके सम्मान में एक मंदिर बनवाएंगे और इस तरह कोणार्क में सूर्य भगवन का सबसे पहला मंदिर बना।
” कोणार्क ” मंदिर की बनावट
कोणार्क सूर्य मंदिर की दिवारिन पर कई ऐसी भी कलाकृतियां है जो काफी ज्यादा अलग है। इन आकृतियों की बनावट काफी अलग है। ये कलाकृतियां कलिंगा वास्तुकला को ध्यान में रखकर बनायीं गयी है। कहा जाता है की राजा नरसिम्हा प्रथम वास्तुकला में काफी दिलचस्पी रखते थे। वोह चाहते थे की मंदिर समाज में धार्मिकता और आधुनिकता का प्रतिक बने।
इसलिए उन्होंने तेहरवी सदी के सबसे ज्ञानी वस्तुकलाकार भिक्षु महाराणा को बुलाया और उन्होंने इस मंदिर को बनाने का काम किया। इस मंदिर को कुछ इस तरह बनाया गया की सूर्य की सबसे पहली किरण सीधे गर्भ गृह में रखी सूर्य भगवान की प्रतिमा पर पड़ती थी और हर सुबह सूर्य के उगते ही मंदिर का गर्भ गृह रौशनी से आज भी भर जाता है।
माना जाता है की सूर्य भगवान स्वर्ग में एक रथ पर सवार होकर चलते है और कोणार्क मंदिर को इसी रख के आकर में बनाया गया है। 7 घोड़ो से खींचा जा रहा 1 विशाल रथ जिसके 24 पहिये है। इस रथ के पहिये साल के 12 महीने को दर्शाते है और इनकी खास बात यह है की ये बिलकुल किसी घडी की तरह बनाये गए है। हर एक पहिये में 12 तिल्लियां है (8 बड़ी तिल्लियां और 8 छोटी तिल्लियां) हर एक बड़ी तिल्ली में 3 घंटे का अंतर है। इन पहियों की 8 कड़ियाँ दिन के 8 पेहेर को दर्शाती है। आज 770 साल बाद भी लोग सूर्य की किरणों का इस्तेमाल करके 13वी सदी में बनाये गए इन पहियों के जरिये बिलकुल सही समय की गणना कर सकते है। इस रथ को कीच रहे 7 घोड़े सप्ताह के 7 दिन और इंद्रधनुष के 7 रंगी को दर्शाते है। यहाँ पर गौर करने वाली बात यह है की विज्ञानं के अनुप्रयोगों के अनुसार इंद्रधनुष के रंगो की खोज 15वी सदी में की गयी थी। तोह क्या हमारे पूर्वज पहले से ही इन रंगो के बारे में जानते थे ?
” कोणार्क ” मंदिर में थी सूर्य भगवान की तैरती हुई प्रतिमा
ऐसा माना जाता है की इस मंदिर में सूर्य भगवान की हवा में तैरती हुई मूर्ति हुआ करती थी। मंदिर को बनाते वक्त सूर्य भगवान की एक विशाल मूर्ति बनायीं गयी थी। एक 52 टन का प्राकर्तिक चुम्बक मंदिर के ऊपरी हिस्से में लगाया गया था। निचले हिस्से में 2 पत्थरो को आपस में जोड़ने के लिए लोहे की चादर और चुम्बक का इस्तेमाल किया गया। निचले हिस्से में लगे चुम्बक के बीच में एक खिचाव तैयार हो गया।
भिक्षु महाराज के 12 साल के बेटे धर्मपद को पता था की दो चुम्बक से बने चुम्बकीय क्षेत्र से किस तरह से तीसरे चुम्बक को संतुलित किया जा सकता है। सूर्य भगवान की मूर्ति को मंदिर के दोनों हिस्सों से बराबर की दूरी पर रखना जरुरी था। धर्मपद ने कारीगरों को यह समझाया, कारीगरों ने ठीक ऐसा ही किया और इस तरह यह हवा में तैरती सूर्य भगवान की यह मूर्ति इस मंदिर की रौनक बन गयी। लेकिन आधुनिकता और धार्मिकता का संकेत यह मंदिर जल्द ही खत्म होने वाला था।
कैसे हुआ ” कोणार्क ” भव्य मंदिर का विनाश
1508 ई में सुल्तान सुलेमान खान करानी के जनरल कला पहाड़ ने उड़ीसा पर हमला कर दिया। उसने उड़ीसा के कई मंदिरो पर हमला किया और बड़ी बेरहमी से मंदिरो का विनाश कर दिया। हमले के दौरान जब कला पहाड़ कोणार्क सूर्य मंदिर पंहुचा तो उसने वहां सूर्य देव की विशाल मूर्ति को तैरते देखा। हवा में तैरती उस मूर्ति को देखकर वह दांग रह गया।
उसने अपनी सेना के साथ मंदिर की दीवारों पर हमला कर दिया। उसने मंदिर की दीवारों को तोड़ने की कई बार कोशिश की और आखिरकार वो मंदिर के मुख्य पत्थर को हटाने में कामियाब हो गया। जैसे ही उसने उस पत्थर को हटाया कुछ ही पलो में मंदिर का 200 फ़ीट ऊंचा मेन टावर पत्थरो के ढेर में बदल गया।
1568, से उड़ीसा में इस्लामिक ताकत का नियंत्रण हो गया। कई मंदिरो पर हमले हुए और भगवान की मूर्तियों को भी तोड़ दिया। कहा जाता है की इस तबाही से बचने के लिए कोणार्क के पुजारियों ने सूर्य भगवान की मूर्ति को मंदिर से निकाल कर कई सैलून तक रेत के अंदर छुपा दिया था।
मंदिर के विनाश की कुछ कहानियां तोह यह भी कहती है की कला पहाड़ पहले हिन्दू हुआ करता था। जिसका नाम राजीव लोचन राय था। वो एक मुस्लिम लड़की से प्यार करने लगा और उसे पाने के लिए दूसने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया । जहाँ एक तरफ अफगानी हमले और दूसरी तरफ कला पहाड़ को इस मंदिर के विनाश का कारण बताया गया।
वही दूसरी और कई इतिहासकारो का मानना है की यह सिर्फ भूकंप और ज्वालामुखी फटने जैसे प्राकर्तिक आपदा के कारण हुआ था। इन्ही प्राकर्तिक आपदाओं के कारण ही इस मंदिर के आस पास की सभी झीले और तालाब सुख गए।
आई टी आई खड़कपुर के वैज्ञानिक के द्वारा की गयी रिसर्च में कोणार्क सूर्य मंदिर से 2 किलोमीटर दूर प्राचीन भारत की प्रचलित नदी ” चंद्र बंगा ” में ऐसे अवशेष मिले है जिससे ये साबित होता है की वहां पहले एक नदी हुआ करती थी जो अब पूरी तरीके से सुख गयी है।
मंदिर से मूर्ति निकले जाने के बाद ” कोणार्क मंदिर ” में सूर्य भगवान के भक्तो का आना बंद हो गया। 17वी और 18वी सदी के दौरान कभी कोणार्क मंदिर की कलाकृतियों को निकालकर उड़ीसा के दूसरे मंदिरो में बसाया गया तो कभी इनसे राजा के महल सजाये गए।
1779 में एक मराठा साधु ने कोणार्क मंदिर के एरोमा खम्भे को हटाकर जग्गनाथपुरी के गेट के सामने बसाया था। इसी तरह 18वी सदी के अंत तक कोणार्क की सारी शान ख़त्म हो गयी और यह छोटा शहर एक घने जंगल में बदल गया। एक ऐसा जंगल जहाँ सिर्फ जंगली जानवर ही रहते है। इंसान दिन की रौशनी में भी सी जंगल में जाने से कतराते है। सूर्य भगवान का यह भव्य मंदिर सिर्फ एक खण्डार बनकर रह गया।
” कोणार्क मंदिर ” का पुनर्निर्माण
कई सैलून तक वीरान पड़े रहने के बाद 1837 में स्कॉटिश इतिहासकार ” जेम्स फॉर्गुसन ” ने कोणार्क को ढूंढा और इस मंदिर पर पढ़ाई की। तभी से इस मंदिर को अंतराष्ट्रीय आकर्षण मिलना शुरू हुआ। 1900 ई सी में ब्रिटिश गवर्नर ” जॉन बुडबर्न ” ने जब इस मंदिर का पुनर्निर्माण और संरक्षण का काम शुरू किया तोह देखते ही देखते यह मंदिर एक सांस्कृतिक पर्यटन स्थल में बदल गया। लेकिन ब्रिटिश सर्कार ने संरक्षण के वक्त इस मंदिर के मुख्या द्वार को रेत की मदद से बंद कर दिया था। इसके पीछे क्या कारण था ? यह आज तक किसी को नहीं पता ।
कोणार्क सूर्य मंदिर को आधुनिक वास्तुकला और सांस्कृतिक धरोहर के रूप में देखकर यूनेस्को ने इसे विश्व सांस्कृतिक धरोहर घोषित कर दिया। इस मंदिर से जुड़ा इतिहास हमें यह सोचने पर मजबूर कर देता है की शायद हमारे पूर्वज समय से कही ज्यादा आगे थे।
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