20 Most Important Places To Visit in Dwarka Dham: इस ब्लॉग में हम बतायेगे की द्वारका धाम में घूमने की 20 सबसे महत्वपूर्ण जगह, जहाँ आप अपने परिवार के साथ जा सकते है।
भारत में करोड़ो लोगों का सपना होता है कि ये चारों धामों में से एक द्वारकाधीश का भ्रमण अवश्य करें। तो आज हम बात करने वाले है द्वारका धाम में घूमने योग्य 20 जगहों के बारें में (20 Most Important Places To Visit in Dwarka Dham), तो यदि आप वहां भ्रमण करने जा रहे है तो एक बार इन जगहों के बारे में जरूर जान ले।
स्कन्धपुराण में वर्णन है कि कलयुग में हरि अथवा भगवान श्रीकृष्ण को अन्यत्र कही नहीं पाया जा सकता, यदि आप भगवान श्रीकृष्ण की खोज कर रहे है तो आपको द्वारकाधाम आना ही पड़ेगा। स्कन्धपुराण में ये भी लिखा है कि जब हम द्वारका जाने की इच्छा करते है तभी हमारे पितृ नरमुक्त होकर गाना गाने लगते है। द्वारका मे जितने कदम रखे जाते है उस एक एक कदम का फल एक एक अश्वमेध यज्ञ के बराबर होता है। तो आप समझ ही गए होगे कितनी पावन धरती है द्वारकाधीश की तो चलिए शुरू करते है यहां स्थापित विभिन्न जगहों की-
20 Most Important Places To Visit in Dwarka Dham, द्वारका धाम में घूमने की 20 सबसे महत्वपूर्ण जगह
द्वारका श्री कृष्ण जी की नगरी जो की गुजरात में स्तिथ है। जहा पर जाने से आपको स्वर्ग की अनुभूति होगी। द्वारका में बहुत सी अच्छी जगह है घूमने की की, तोह चलिए चलते है द्वारका में घूमने की जगह कौन-कौन सी है।
1. द्वारकाधीश मंदिर (Dwarkadheesh Temple)
इस मंदिर के दो द्वार है- पहला मोक्ष द्वार और दूसरा स्वर्ग द्वार। स्वर्ग द्वार 56 सिड्डियों का रास्ता है। यहां से नीचे उतरते ही एक जगह है जहां पर तुला दान किया जाता है। इसे महादान के नाम से भी जाना जाता है। ये हिन्दु धर्म के प्रमुख अनुष्ठनों में से एक है। इस दान में अपने वजन के बराबर अन्न, तेल, फल, घी दान किया जाता है।
द्वारकाधीश मंदिर (Dwarkadheesh Temple) की ध्वजा की लम्बाई 52 गज है। ये ध्वजा 52 गज ही क्यू? वहां के पुजारियों का कहना है कि 12 राशियों, 27 नक्षत्र, 10 दिशाएं, 1 सूर्य, 1 चन्द्र और स्वंय भगवान द्वारकाधीश इन सभी को मिलाकर 52 की संख्या पूरी होती है जो कि ध्वजा की लम्बाई है। दिन में 5 बार ध्वजा को बदला जाता है और ध्वजा को एक अगोटी ब्राह्मण 7 मंजिल उंचे मंदिर पर चढ़कर इसको चढ़ाता है।
द्वारकाधीश मंदिर में तुला दान का क्या महत्व है ?
एक समय की बात है सत्यभामा जी ने नारद मुनी जी को द्वारकाधीश दान में दे दिए। अपनी गलती का एहसास करते हुए जब द्वारकाधीश को वापस मांगा तो नारद जी ने कहा आपको कृष्णा के वजन के बराबर धन तराजू पर रखना पडेगाद्वारका का सम्पूर्ण धन रखा गया परन्तु कृष्ण टस से मस नहीं हुए। रूकमणी जी आए और तुलसी का एक दल डालकर इस तुला दान को सम्पन्न किया। ये तुला दान विशेष पण्डितों द्वारा किया जाता है। संक्षिप्त में कहा जाए तो इस दान को करने से लम्बी आयु, सफलता, नाम शक्ति, प्रसिद्धि, सुख, धन में वृद्धि होती है ऐसा वहां के स्थानीय ब्राह्मण कहते है।
2. गोमती नदी, Dwarka Dham Me Ghumne Ki Jagah
जो भक्त द्वारका में आकर गोमती नदी ने स्नान नहीं करता उसकी यात्रा अपूर्ण मानी जाएगी। स्वयं ब्रह्मा जी सृष्टी के रचियेता कहते है गोमती मैया की महिमा का वर्णन करने में यो असमर्थ है। श्रीमध्वाचार्य जी कहते है कि गोमती का अर्थ क्या है? गो का मतलब है जल और मती का अर्थ है बुद्धि अर्थात् जो जल हमारी बुद्धि को कृष्ण की ओर लेकर जाए वो है गोमती नदी।
शास्त्र कहते है स्कन्ध पुराण में वर्णन है कि गोमती नदी में स्नान करने से मन, वचन और कर्म सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं। एक बार गोमती नदी में डुबकी लगाने का फल है 1000 बार गंगा मैया में स्नान करना।
3. माता रुकमणी का मंदिर- Rukmani Devi Temple
यह मंदिर द्वारकाधीश मंदिर से 2 किलोमीटर दूर है। यह मंदिर द्वारकाधीश मंदिर से इतना दूर क्यूं है?
इसके पीछे एक कथा है। एक बार रूकमणी जी और श्री कृष्ण जी दुरंवासा ऋषि को उनके महल में आमंत्रित करते है। तब दुरवासा ऋषि उनके अनुग्रह को स्वीकार करते है लेकिन एक शर्त पर यो कहते है जिस रथ पर आप आए है उन रथ के घोड़ों को आप खुला छोड दीजिए। और दोनों स्वयं रथ को खीचकर आप मुझे द्वारका लेकर जाए।
दोनो स्वीकार करते है और रथ को खीचना प्रारंभ करते है। रास्ते में रूकमणी माता को प्यास लग जाती है, ये देखकर द्वारकाधीश अपने पैर के अंगूठे से गंगा जी को प्रकट कर लेते है और मैया अपनी प्यास बुझा लेती है। यह देखकर दुरवासा ऋषि अत्यंत कोधित हो जाते है और रूकमणी मैया को श्राप दे देते है वो कहते है तुम्हे मुझसे बिना पूछे जल का पान किया और श्राप दिया कि तुम्हे कृष्ण से अलग होना पड़ेगा और तुम्हे कृष्ण का वियोग सहना पड़ेगा।
द्वारकाधीश कृष्ण को आप देते है कि तुम्हारी नगरी में हमेशा जल का अभाव होगा कहीं भी मीठा पानी नहीं मिलेगा। आज भी द्वारका में जल का अभाव है। बाद में रूकमणी मैया माफी मांगती है और इसी स्थान पर तपस्या करती है और दुरवासा ऋषि को प्रसन्न करती है। आज भी इस स्थान पर जल का दान किया जाता है।
यह मंदिर है तो छोटा पर होश उठाने वाला है। स्वयं द्वारकाधीश भगवान श्री कृष्ण ने कहा है यदि कोई द्वारका धाम आए उनके दर्शन तो करे लेकिन रूकमणी माता के मंदिर के दर्शन ना करे तो उसे द्वारकाधाम में आने का सिर्फ आधा फल ही प्राप्त होता है। रूकमणी मैया के मंदिर की ध्वजा 13 गज की है।
4. श्रीनागेश्वर मंदिर- Nageshwar Jyotirlinga
12 ज्योर्तिलिंग में से 10 वें पर आते है श्रीनागेश्वर महादेव। नागेश्वर यानि जो नागों का ईश्वर हो । यहां पर माता पर्वती जानी जाती है नागेश्वरी के नाम से स्वयं श्री द्वारकाधीश भगवान कृष्ण अपने हाथों से भगवान नागेश्वर का रूद्र अभिषेक किया करते थे।
5. पाण्डव के कुए
यहां जाने के लिए आपको गोमती नदी से होकर गुजरना होता है। यहां आपको 5 कुए देखने को मिलेंगें और हर कुए में आपको अलग तरह का पानी पीने को मिलेगा। 5 पाण्डवों के स्वभाव के हिसाब से कुओ का पानी मीठा होता जाता हैइसमें सबसे मीठा पानी आपको नकुल के कुए से पीने को मिलेगा
6. लक्ष्मी नारायण जी का मंदिर- Laxmi Narayan Temple
इस मंदिर में जो लक्ष्मी और नारायण जी की मूर्ति है वो स्वयंभू यानि इस मूर्ति को किसी ने बनाया नहीं है ये स्वयं प्रकट हुई हैये मूर्ती गरूड पर बैठी है। मंदिर के प्रांगण में एक विशाल वृक्ष आपको देखने को मिलेगा, इसी वृक्ष के नीचे दुरवास ऋषि ने तपस्या की थी।
7. सावित्री वाव
यहां वाव का मतलब कुए से हैंपौराणिक कथाओं के अनुसार एक भक्त था जिसका नाम था गोडाणा। ये डाकोर में रहते थे। डाकोर द्वारका से 500 किलोमीटर दूर है यानि 9 घण्टे और गौडाणा नाम के भक्त हर रोज द्वारका जी के दर्शन करने आते थे जब वे वृद्ध हो गए तो उन्होने द्वारकाधीश से प्रार्थना की कि यदि आप हमारी भक्ती से प्रसन्न हो तो हमारे घर डाकोर चले।
तब द्वारकाधीश उनकी सेवा से अत्यधिक प्रसन्न थे तो उन्होने उनसे कहा की अगली बार जब द्वारका आओ तो बैलगाड़ी में आना मैं तुम्हारे साथ वापस डाकोर चलूंगा। ऐसा ही हुआ गौडाणा अगली बार बैलगाड़ी मे आए तो द्वारकाधीश अपने मंदिर से चुपके से बाहर आकर उनकी बैलगाड़ी में बैठकर डाकोर के लिए निकल जाते हैगौडाणा रथ चलाकर थक जाते है तो स्वयं द्वारकाधीश रथ चलाकर डाकोर पहुंचे।
सुबह हुई तो जब पुजारियों ने मंदिर के दर्शन खोले तो द्वारकाधीश भगवान वहां नहीं थे। द्वारका में हाहाकार मच गया। तब भक्तों के सपने में आकर द्वारका जी ने कहा चिंता मत करो, मेरे एक अलग एक और विग्रह तुम्हे इस स्थान सावित्री वाव पर मिलेंगेंयह स्थान बहुत ही रहस्यमयी है।
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8. गोपी तालाब
ये द्वारका से लगभग 20 किलोमीटर दूर है। प्रहलाद महाराज द्वारा स्कन्ध पुराण, गर्ग संहिता और पदम पुराण में भी इस पवित्र स्थान की महिमा के बारे में लिखा गया है। गोपी तालाब की मिट्टी चन्दन के बराबर है। इस स्थान से निकलने वाली पिली मिट्टी गोपी चंदन कहलाती है। यह वह तालाब है जहां कृष्ण अपनी वृन्दावन की गोपियों से मिले थें।
कहा जाता है इस स्थान पर गोपियों ने बहुत समय तक निवास किया था इसलिए इस स्थान को गोपी तालाब कहा जाता है। सैकड़ों पाप किया व्यक्ति भी यदि गोपी चन्दन लगाता है तो वो श्री हरी के प्रकृति से परे गोलुकधाम को जाता है।
9. भेट द्वारका
द्वारकाधीश मंदिर से यह स्थान 30 किलो मीटर दूर है ओखा गांव और यहां से 20 किलोमीटर की नोका सवारी करने के बाद आप भेट द्वारका पहुंच पायेंगें। इस जगह के बारे में बताया गया है कि बार-बार प्रलय आने पर भी ये स्थान प्रलय में नहीं आता। भगवान श्रीकृष्ण ने इस स्थान पर लोग इसे भेट शंकद्वार तीर्थ के नाम से भी जानते है। इस मंदिर अपने हाथों से बनाई थी। इस मंदिर के बारे में 3 रोचक बातें है- शंकासुर नामक असुर का वध किया था इसलिए कई में जो भगवान की मूर्ति है वह स्वयं माता रूकमणी ने मंदिर के अंदर जो मूर्ति है यहां के पुजारी मानते है मीरा बाई उन्ही मूर्ति में समा गई थी।
मंदिर के अंदर जो मूर्ति की जो सेवा की जाती है वो ब्रह्मचार्यों द्वारा की जाती है लेकिन लक्ष्मी या सत्याभामा के रूप में वो सेवा करते है इसका अर्थ है सखी भाव में। इसलिए यहां के पुजारी के वस्त्र व आभूषण स्त्री जैसे लगते है।
10. श्री मकर ध्वज मंदिर
पूरे विश्व में सिर्फ ये ऐसा मंदिर है जहां हुनमान जी के पुत्र के दर्शन आपको करने को मिलेंगे। मगर ये कैसे हनुमान जी तो बाल ब्रह्मचारी थे। इसके पीछे एक कथा है आइए जानते है इसके बारे में।
बात उस समय की है जब हनुमान जी माता सीता की खोज में लंका जाते है और रावण उनको बन्दी बनाकर उनकी पूछ में आग लगा देते है। हनुमान जी अपनी पूछ की आग को बूझाने के लिए समुद्र पहुंचते है तो उस समय उनके पसीने की एक बूंद समुद्र में जाता है और मछली उस पसीने को अपने मुहं में धारण कर लेती है और मछली गर्भवती हो जाती है। वहां से उत्पत्ती होती है हनुमान जी के पुत्र मकर ध्वज की।
11. श्री भडकेश्वर महादेव
आज से 5000 साल पहले अरब सागर से स्वंय प्रकट हुआ ये शिवलिंग आज हमे मडकेश्वर महादेव के रूप में दर्शन देता है। जून और जुलाई के महिने में पूरा समुद्र भडकेश्वर महादेव का अभिषेक करता है। इस मंदिर में भगवान शिव को चन्द्रमोलीश्वर के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर सुबह 8 बजे से 12 बजे तक जलाभिषेक के लिए सबके लिए खुला रहता है।
12. गीता मंदिर- Gita Mandir
यह बहुत अद्भुत मंदिर है। इस मंदिर की दिवारों पर भगवत गीता के श्लोक लिखें है। यदि आप वहां इन श्लोकों को पढ़ेंगे तो आपकी आवाज गूंजेगी। आपको वहां ऐसा महसूस होगा जैसे आप महाभारत की रणभूमि से स्वंतः उन श्लोकों का उच्चारण कर रहे हो।
13. स्कॉन मंदिर
यहां रूकमणी द्वारकाधीश की मूर्ति बहुत ही ज्यादा खूबसूरत है। यह मंदिर सन् 2000 में बना था। यह मंदिर बहुत ही बड़ा है साथ ही बहुत ही खूबसूरत है। यह मंदिर द्वारकाधीश मंदिर से सिर्फ 3 मिनट की दूरी पर स्थित है।
14. श्रीराम लक्ष्मण द्वार
इस मंदिर में 55 सालों से श्री राम नाम के किर्तन का उच्चारण हो रहा है। यहां आने पर आपको बहुत ही सकारात्मक उर्जा महसूस होगी।
15. संगम नारायण, समुद्र नारायण
जब भगवान श्रीकृष्ण मथुरा से द्वारका आए और अपनी नगरी बसाना चाह रहे थे तो उन्होंने समुद्र से जगह मांगी। समुद्र ने आदेश का पालन करते हुए भगवान को 12 योजन जगह दी और विश्वकर्मा जी ने रातो रात द्वारका की नगरी बना दी। ये अति पुरातन चतुर्भुज भगवान की मूर्तियां हैं। स्कन्धपुराण में वर्णन है कि संगम नारायण का दर्शन करने से द्वारका यात्रा का पुण्य फल प्राप्त होता है।
16. श्री भालका तीर्थ मंदिर
यही पर भगवान श्री द्वारकाधीश ने अपनी लीलाएं समाप्त की थी और अपने धाम लौट गए थे। ब्राह्मणों के श्राप के कारण अपने ही वंश को नष्ट होता हुआ देखकर श्रीकृष्ण बहुत दुखी हुए। ये इसी बालक तीर्थ में आकर बाल कुण्ड सरोवर के समीप पीपल के पेड़ के नीचे अपना दाहीना पाव बाएं पाव पर रखकर योग समाधि में बैठे थे। उसी समय जरा नाम के शिकारी ने भूलवश उस पैर को मृग समझकर तीर चला दिया।
वो तीर भगवान के दाहीने पैर के तलवे में जाकर लगा। पास में पहुंचने पर शिकारी ने देखा यह तो एक योग्स्त पिताम्बरधारी पुरूषोत्तम है। वह घबराकर अपने अपराध की क्षमा मांगने लगा। तब भगवान ने उसको आश्वासन किया कि जो कुछ हुआ है वो मेरी ही स्वीकृति से और इच्छा से हुआ है। भगवान ने कहा डरो मत मेरी आज्ञा लेकर बैकुण्ठ को जाओ।
शिकारी ने उसके बाद विमान से बैकुण्ठ धाम की ओर प्रस्थान किया। उसके बाद भगवान भी अपने परम धाम की आरे चल पड़े। शिकारी के द्वारा मारा गया बाण इसी बाल कुण्ड में फेंका गया। भाल मारने के कारण यह स्थान भालका तीर्थ कहलाता है।
17. सोने की द्वारका
जो बाहर से देखने में ही बहुत खूबसूरत है। यह मंदिर 2 मंजिलों पर बना है। पहली मंदिर पर श्रीकृष्ण भगवान की अलग अलग लीलाओं को दर्शाया गया है।
18. शिवराजपुरा बीच
यह द्वारका से 12 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। यहां पर आपको लहरों और समुद्र का मनभावन दृश्य देखने को मिलेगा।
19. सुदामा सेतु
यह गोमती नदी पर बना केबल ब्रीज है। यह पंचकुई और गोमती घाट को जोड़ता है। यह दिखने में ऋषिकेश के राम झूले और लक्ष्मण झूले जैसा दिखाई पड़ता है।
20. शारदापीठ
यह भारत में बने उन 4 मठों में से एक है जिनकी रचना आदिगुरूशंकराचार्य ने की थी जो द्वारकापीठ और कालीका मठ के नाम से भी जाना जाता है। यह मठ द्वारका मंदिर के परिसर में ही बना हुआ है। जहां शकंराचार्य जी के जीवन से संबंधित कई कलात्मक चीत्र दर्शाए गए है।
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प्रश्न & उतर
Q.1 द्वारका घूमने में कितना समय लगता है।
उतर: वैसे तो कृष्ण जी नगरी में आप जितने दिन चाहे उतने दिन रुक सकते है पर आपको कम से कम 3 दिन का समय चाहिए घूमने के लिए।
Q.2 सबसे पहले कहा जाना चाहिए घूमने सोमनाथ या फिर द्वारका?
उतर: सबसे पहले दिन सोमनाथ, दूसरे द्वारका की यात्रा और द्वारकादिश का मंदिर के दर्शन, और उसके बाद एक के बाद एक जगह घूमे।