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    Home - ट्रेवल - बद्रीनाथ धाम में घूमने की 20 मुख्य जगह, बद्रीनाथ धाम में दर्शन करने की सही विधि
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    बद्रीनाथ धाम में घूमने की 20 मुख्य जगह, बद्रीनाथ धाम में दर्शन करने की सही विधि

    Goyal MuskanBy Goyal Muskan6 January 2025Updated:17 January 2025No Comments13 Mins Read
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    बद्रीनाथ धाम में घूमने की 20 मुख्य जगह
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    बद्रीनाथ धाम में घूमने की 20 मुख्य जगह, बद्रीनाथ धाम में दर्शन करने की सही विधि:  हिमालय पर्वत की गोद  में बसा यह मंदिर , समुद्र से 10827 की ऊंचाई पर बसा है बद्रीनाथ धाम। जो की हिन्दू धर्म के चारों धामों में से पहला धाम है। यहाँ पर भगवन नारायण की तपोभूमि है, इन्होने ब्रह्मा जी को स्वयं की नाभि से प्रकट किया था। यदि आप इस दिव्या भूमि  के बारे में जानने को इच्छुक है तोह पढ़िए हमारे ब्लॉग को और जानिए यहाँ घूमने की कौन कोनसी जगह है?

    Table of Contents

    Toggle
    • बद्रीनाथ धाम में घूमने की 20 मुख्य जगह
    • 1.बद्रीनाथ मंदिर
    • भगवान् का नाम बद्रीनाथ या बद्रीविशाल क्यों पड़ा ?
    • 2.घंटा कर्ण मंदिर
    • 3.चरण पादुका
    • 4.तप्त कुंड
    • 5. नारद कुंड
    • 6.आदिकेश्वर महादेव
    • 7.ब्रह्म कपाल
    • 8. माणा गांव
    • 9. भीमपुल
    • 10.स्वर्गरोहण मार्ग
    • 11.व्यास पोथी
    • 12. गणेश जी की गुफा
    • 13. श्रीअष्टाक्षरी आश्रम
    • 14. लीला डूँगी
    • 15. एकादशी गुफा
    • 16. पांडुकेश्वर गांव
    • 17. योग बद्री मंदिर
    • 18. श्री नरसिंघ मंदिर

    बद्रीनाथ धाम में घूमने की 20 मुख्य जगह

    नीचे हमने 20 ऐसी  जगहों के बारे मे बताया है जहाँ पर बर्द्रिनाथ यात्रा करने जाए तो अवश्य जाए। यह जगह बहुत ही प्राचीन है जिनके बारे में बहुत ही कम लोगों को पता है।

    1.बद्रीनाथ मंदिर

    हर हिन्दू का सपना होता है की वह जीवन में एक बार चार धाम की यात्रा अवश्य करे। तो, इन चार धाम में सबसे पहला धाम बद्रीनाथ धाम है। सबसे पहले सतयुग में स्वयं ब्रह्मा जी ने अपने हाथो से नारदकुंड से बद्रीनाथ की उस मूर्ति को निकला था जिसके दर्शन आप आज भी मंदिर में करते है। उसके बाद देवताओ ने विश्कर्मा जी द्वारा इस मंदिर का निर्माण करवाया था। इसके बाद नारद जी को इस मंदिर का प्रधान आचार्य नियुक्त किया गया। इन्हे इसलिए रखा गया ताकि 6 महीने तोह मनुष्य भगवान नारायण जी की पूजा करेंगे और 6 महीने देवताओ द्वारा इनकी पूजा की जाएगी। आज भी इस नियम का पालन किया जा रहा है।

    जैसे ही  आदिशंकराचार्य  जी बद्रीनाथ धाम पहुंचे तोह वो तप्त कुंड में स्नान करने गए। जैसे ही वे स्नान करने गए तोह उस समय उनके हाथो में भगवन बद्रीविशाल जी प्रकट हो गए। उन्होंने विधिवत विग्रह की मंदिर में अपने हाथों से प्राण प्रतिष्ठा करवा दी जिस कारण से यह विग्रह आज भी आपको मंदिर में देखने को मिलेगा। यह मूर्ति शालिग्राम शीला की बानी हुई है। साथ ही आप जो मूर्ति देखते है वेज थोड़ी सी खंडित है।badrinath dham visit in june

    भगवान् का नाम बद्रीनाथ या बद्रीविशाल क्यों पड़ा ?

    पुराणों के अनुसार एक बार देव ऋषि नारद जी शीर सागर में भगवान नारायण के दर्शन करने पहुंचे। भगवान के अद्भुत दर्शन करने के बाद जिस तरह नारायण शेष सैयां पर विश्राम कर रहे थे और माता लक्ष्य उनके पैर दबा रही थी, यह सब देखकर उन्हें अच्छा नहीं लगा और उन्होंने नारायण जी से कहा ! हे जगत्पति, हे ईश्वर ! आप जो कार्य करेंगे वोह कार्य ही इस संसार के लिए आदर्श होगा और सारा संसार ही वही कार्य करेगा। आप यदि इस प्रकार शेष सैयां पर लेते रहेंगे और माता लक्ष्मी से पैर दबवाते रहेंगे तोह पूरा संसार ही वैसे करेगा। कोई तपस्या नहीं करेगा। यह सब सुनकर भगवान को बहुत दुःख पंहुचा। उन्होंने इन सबका त्याग करने का निश्चय किया। उन्होंने बहाने से माता लक्ष्मी को नाम कन्या के पास भेज दिया और वे खुद हिमालय की गोद  में इस स्थान पर तपस्या करने के लिए आये।Badridnath Narayan katha

    जैसे ही भगवान नारायण भीषण तपस्या में बैठ गए और उनके बैठने के बाद जब माता लक्ष्मी जब वापस आयी तोह उन्होंने देखा की शेष सैयां तो खली है। भगवान को वहां ना पाकर लक्ष्मी जी व्याकुल हो गयी और भगवान की खोज में निकल गयी। खोजते खोजते वह बद्रीनाथ धाम पहुंच गयी। उन्होंने वहां अपने स्वामी को तपस्या में लीन देखा। धुप, लू, तूफ़ान, बर्फ़बारी, बारिश में अपने स्वामी को तप करते देखा। यह सब देखकर उन्हें बहुत दुःख हुआ और उन्होंने बद्री के वृक्ष का रूप धारण कर लिया। बद्री यानी की होता है बेर। उन्होंने वृक्ष का रूप धारण इसलिए किया ताकि वोह अपने पति की सेवा कर सके और अपने स्वामी को बरसात, धुप, लू से बचा सके। जब भगवान की तपस्या पूरी हुई तोह उन्होंने देखा की किस प्रकार उनकी पत्नी उनकी सेवा में लगी है। प्रसन्न होकर नारायण भगवान ने कहा आज से यह स्थान आपके नाम से जाना जायेगा यानी बद्रीनाथ धाम। बद्री के नाथ यानि भगवान नारायण या फिर बद्री विशाल।

    2.घंटा कर्ण मंदिर

    यह बद्रीनाथ धाम के छेत्रपाल है या आप इन्हे कोतवाल भी कह सकते है।Ghanta karn Mandir

    3.चरण पादुका

    नर और नारायण पर्वतों के बीच बसा यह स्थान, यहाँ पर भगवान नारायण ने सबसे पहले आकर इस स्थान पर अपने चरण रखे थे। यह मंदिर बद्रीनाथ मंदिर से 2.5 किलोमीटर दूर है। जिन चरणों से साक्षात् गंगा जी प्रकट होती है, जिन चरणों को प्राप्त करने के लिए साधु महात्मा वर्षों तक तपस्या करते है, उन्ही नारायण, जगपति के दर्शन आप करते है।charan paduka mandir in badrinath dham

    4.तप्त कुंड

    तप्त कुंड या अग्नि कुंड। जहा पर बद्रीनाथ में 4 से 5 डिग्री का तापमान रहता है, वही इस कुंड में 45 डिग्री तक गरम पानी रहता है। स्कंध पुराण में वर्णन है जिस प्रकार अग्नि में कुछ दाल दो सब कुछ जल कर भस्म हो जाता है, उसी प्रकार यदि कोई तप्त कुंड में स्नान करता है, तो उसके पाप भी जलकर समाप्त हो जाते है। कहा जाता है की स्वयं अग्नि देव भगवान नारायण की तपस्या कर रहे है।Tapt kund in badrinath dham

    कथा- एक दिन की बात है महाराज भृगु की अनुपस्थिति में के राक्षस उनके आश्रम में आया और उनकी गर्भवती पत्नी को उठाकर ले गया। उसने वहां पर आश्रम में प्रज्जवलित अग्नि के सामने अग्नि देव से कहा की ठीक ठीक बताओ सबसे पहले इसका वरण किसने किया था ? क्युकी वास्तव में इस राक्षस ने भीगु ऋषि की पत्नी से विवाह किया था परन्तु वेद मंत्रो के द्वारा ठीक तरह से विवाह नहीं हो पाया। अग्नि देव ने भी संकोचवश होकर बोल दिया, आपने ही किया। इतना सुनते ही वह राक्षस भृगु  ऋषि की पत्नी को उठा कर ले गया। जब वह राक्षस भृगु  ऋषि की पत्नी को को लेकर जा रहा था तोह भृगु  ऋषि की पत्नी के गर्भ में प्रसव हुआ। उनके पुत्र के रूप में चवण ऋषि प्रकट हुए। छोटे से चवण ऋषि के शरीर से इतना तेज निकल रहा था की राक्षस को भस्म करके राख कर दिया। वह पीछे भृगु  ऋषि जैसे ही आश्रम पहुंचे अपनी दिव्या शक्ति से सब समझ गए। उन्होंने क्रोधित होकर अग्नि देव को श्राप दे दिया की तुम्हारी उपस्थिति में राक्षस मेरे पत्नी को उठा कर कैसे ले गया।bhrigu rishi katha

    तब अग्नि देव सीधा वेद व्यास जी के चरणों में समर्पित हो गए। तोह उन्हें वेद व्यास जी ने अग्नि देव से कहा की तुम बद्रिका आश्रम जाओ। वहां पर जाकर नारायण की आराधना तपस्या करो। तो अग्नि देव बद्रिका आश्रम आ जाते है और तपस्या करना प्रारम्भ कर देते है। उनकी तपस्या से  भगवान नारायण अत्यधिक प्रसन्न होते है और कहते है की हे पुत्र ! तुम्हारे तोह सारे पाप तभी जलकर राख हो गए थे जब तुमने बद्रीधाम में पैर रखा था। अब तुम एक काम करो तुम यहाँ पर कुंड के रूप में उपस्थित हो जाओ और जितने भी भक्तगण मेरे दर्शन करने आते है और उनको भी पाप तुम इसी तरह जलाकर राख कर दो।

    5. नारद कुंड

    यह तप्त कुंड के बिलकुल पास है। इसका नाम नारद मुनि के नाम पर रखा गया है। पुराणों के अनुसार इसी कुंड से आदिशंकराचार्य जी ने बद्रीविशाल जी की मूर्ति को निकाला था। ऐसी मान्यता है की श्री नारद मुनि जी ने नारद भक्ति सूत्र लिखा था।

    विरह पुराण में वर्णन है की स्वयं भगवान् बद्रीविशाल जी ने पंचरात्रि विधि पूजा पद्धति विधि नारायण जी को सिखाई थी, की इसी प्रकार मेरी पूजा करनी है। इसलिए बद्रिकाश्रम में नारद मुनि को ही भगवान् नारायण के प्रधान पुजारी की मान्यता दी जाती है। कुंड के गरम पानी में औषधीय गन भी है। कहते है अगर आप नारद कुंड के जल में स्नान करते है तो आपकी त्वचा के रोग पल भर में सही हो जाते है।naarad kund

    6.आदिकेश्वर महादेव

    तप्त कुंड और नारद कुंड के बिलकुल साथ है आदिकेश्वर महादेव का मंदिर। ये स्वयं भगवान नारायण के यहाँ पर माता पिता माने जाते है।

    कथा- एक समय की बात है जब भगवान नारायण इस स्थान पर आये तो उनको यह स्थान बहुत सुन्दर लगा। स्थान का नाम था केदारखंड। यहाँ भगवान शिव और माता पार्वती रहते थे। जहा आज आप बद्रीविशाल जी का मंदिर देखते है। वह माता पार्वती और शिव जी का महल था। तो जब भगवान नारायण आये तो उन्होंने देखा की यह शिव जी का स्थान है और भोले नाथ ये स्थान मुझे तपस्या के लिए देंगे नहीं। तो उन्होंने एक लीला रची। नारायण जी ने एक छोटे बच्चे का रूप धारण कर लिया और जोर- जोर से रोने लगे। महल के बहार बच्चे के रट हुए आवाज सुनी तो माता पार्वती बहार आयी और उन्होंने उस बच्चे को उठा लिया और उन्हें महल में ले गयी। वहां नारायण जी को लेटकर नहाने चली गयी और जैसे ही वापस आयी तोह उन्होंने देखा की वहां पर भगवान नारायण ध्यान मुद्रा में बैठे थे। नारायण ने माता पार्वती और शिव जी से कहा की मुझे यह स्थान बहुत पसंद है और आप लोगों के लिए एक नया धाम बना दिया है केदारनाथ। जो भी भक्त यहाँ आएगा लेकिन जब तक वो तप्त कुंड में स्नान नहीं करेगा और मेरे माता पिता यानि की शंकर भगवान और पार्वती माता के दर्शन नहीं करेगा तब तक उसकी यात्रा अपूर्ण मानी जाएगी।aadikeshwar mahadev in badrinath

    इस मंदिर में आपको भगवान नारायण के छोटे पैरों के दर्शन करने को भी मिलेंगे जब उन्होंने माता पार्वती और शिव जी को भ्रमित करने के लिए बालक रूप धारण किया था।

    दर्शन करने की सही विधि-आपको सबसे पहले तप्त कुंड में स्नान करना है फिर आदिकेश्वर महादेव के दर्शन करने है क्युकी यहाँ पर माता पार्वती और शिव को नारायण भगवान के माता पिता कहा जाता है। उसके बाद आप नारायण के दर्शन करने जा सकते है। यही दर्शन करने की सही विधि है।

    7.ब्रह्म कपाल

    यह ब्रह्मा जी का पांचवा सर है। चार मुख से चार वेद की उत्त्पत्ति हुई। एक मुख पर दोष लग गया था। दोष वाले सर को शिव जी ने काट दिया था। जब ब्रह्मा जी ने सर को सीधा कटा तोह ब्रह्महत्या का दोष लग गया था। शिव जी पर दोष लगने के बाद शिव चारों लोको में घूमे कही भी वे इस दोष से मुक्त नहीं हो पाए और अंत में विष्णु भगवान के शरण में आकर शिव जी को ब्रह्म हत्या से मुक्ति मिली थी। जब यहाँ पर शीला के रूप में स्थापित किया गया था। यह ब्रह्मा जी की शीला है जिसे ब्रह्मशिला कहते है। इस स्थान के बारे में कहा जाता है की जो मनुष्य यहाँ आकर पिंडदान करेगा उनके पितरो को अवश्य ही मोक्ष की प्राप्ति होगी।brahmkapaal in badrinath dham

    8. माणा गांव

    यह भारत का सबसे पहला गांव है। यहाँ पर बहुत सारी सुन्दर और रोचक जगह है। कहा जाता है इसी गांव के रास्ते से पांडव स्वर्ग की और चले थे लेकिन मार्ग की कठिनाइयों के कारन एक एक करके उनकी मृत्यु होती चली गयी। केवल युधिष्ठिर ही जीवित रहे और स्व ही यमराज के साथ आगे जा सके।mana gaav

    9. भीमपुल

    यह एक विशाल पत्थर के रूप में आपको दिखेगा। जब पांडव माणा गांव से स्वर्ग की और जा रहे थे तो उस समय भीं जी ने देक्ल्ह की सरस्वती माता का वेग बहुत ही तेज है। तोह उन्होंने सरस्वती माता से निवेदन किया की हमें रास्ता दे। तोह मैया ने रास्ता नहीं दिया। तब भीम जी क्रोधित हो गए और उन्होंने के विशाल पत्थर उठाया और बीच रस्ते में रख दिया जिससे एक पुल बन गया। आज भी वह पत्थर वहां है और उस पत्थर के निचे सरस्वती माता बहती है।Bheem Pul

    कहा जाता है की वेदव्यास जी ने कहा है जो भी एक बार सरस्वती माता के दर्शन कर लेता है वह बहुत बुद्धिमान हो जाता है। उसके परिवार पर श्री कृष्णा जी की कृपा हो जाती है।

    10.स्वर्गरोहण मार्ग

    इसी रास्ते से पांडव स्वर्ग की ओर गए थे। स्वर्ग  रोहण द्वार से आप  5 किलोमीटर आगे बढ़ेंगे तो वसुधरा आता है। वसुधरा एक झरना है जिसके बारे में कहा जाता है की जिसने ज्यादा पाप करे है उस पर झरने का पानी बहुत तेजी से गिरता है ओर पाप नहीं करे तोह झरने का पानी नहीं गिरता।swarg jaane ka rastha kya yahi hai ?

    11.व्यास पोथी

    वेदव्यास जी ने भगवन गणेश से महाभारत के जो पैन लिखवाये थे उन्हें महाभारत में शामिल नहीं किया था ओर उसके बाद उन्होंने उन पन्नो को पत्थर में बदल दिया था। यहाँ आपको वही पन्ने पत्थर के आकर में दिखाई देंगे। हिन्दू धर्म के सभी ग्रंथो की रचना इसी पुण्यतिथि पर वेद व्यास द्वारा की गयी। वेदव्यास जी ने सबसे पहले वेदा, त्रिवेदा, की रचना की थी।kya yahi likhe gaye the saare granth ? vyas Pothi

    12. गणेश जी की गुफा

    श्री वेदव्यास जी ने व्यास गुफा में ही वेदों की रचना की और गणेश जी के साथ गणेश गुफा में इन ग्रंथो को लिखा था। व्यास गुफा से थोड़ी ही दूरी पर यह स्थित है। जब वेद व्यास जी वेदों की रचना कर रहे थे तोह उन्हें लिखने के लिए  कोई चाहिए था। तब ब्रह्मा जी ने गणेश जी को बुलाने के लिए कहा, क्युकी हर शुभ कार्य में सबसे पहले गणेश जी का नाम लिया जाता है। परन्तु गणेश जी ने एक शर्त रखी और कहा की जिस क्षण आप बोलते हुए रुक गए उसी क्षण में लिखना बंद कर दूंगा। व्यास जी ने कहा तथास्तु। उस पर व्यास जी ने कहा मेरी भी एक शर्त ही आप हर शब्द तब ही लिखेंगे जब आपकी उस पर मंजूरी होगी। तो इसी प्रकार इसी गुफा में सारे ग्रन्थ लिपिबद्ध किये गए।ganesh ji ki gufa

    13. श्रीअष्टाक्षरी आश्रम

    यह मंदिर पीपल कोटि सड़क रोड पर स्थित है। यहाँ आपको श्रीरामनुजचार्य जी के दर्शन होते है। यह प्रतिमा राम जी के छोटे भाई लक्ष्मण जी की है। यदि आपको भगवान नारायण की कृपा चाहिए तो अवश्य यहाँ आकर दर्शन करना।badrinath Asthakshari Aashram

    14. लीला डूँगी

    भगवान बद्रीविशाल नारायण की यह जन्मस्थली है। यहाँ पर ज्यादा भक्त आते नहीं है। यही वो स्थान है जहाँ पर भगवान नारायण ने सबसे पहले बालक रूप धारण किया था जिसकी कथा ऊपर बताई गयी है।badrinath leela dungi

    15. एकादशी गुफा

    प्रत्येक वैष्णव भक्त एकादशी का व्रत जरूर करता है। यही वो मंदिर है जहाँ पर एकादशी प्रकट हुई। इस जगह के बारे में ज्यादा लोग नहीं जानते।ekadashi vrat ki shuruwat yahan se hui

    इस गुफा के पीछे भी एक कथा है यदि आप जानना चाहते है तोह कमेंट सेक्शन में जरूर बताये।

    16. पांडुकेश्वर गांव

    इस मंदिर में जाकर आपके रोंगटे खड़े हो जायेंगे। यह मंदिर बद्रीनाथ धाम से 22 किलोमीटर निचे की तरफ है। यह जगह आपको शांति का अनुभव कराती है। यह पांडवों की जन्म भूमि है। इस मंदिर को सप्त बद्री की श्रेणी में रखा जाता है।Pandukeshwar village in joshimath

    17. योग बद्री मंदिर

    यहाँ पर एक मंदिर है जहाँ पर भगवान नारायण योग मुद्रा में बैठे है। इस मंदिर की स्थापना पांडवो के पिता राजा पाण्डु ने की थी।yog badri mandir

    18. श्री नरसिंघ मंदिर

    यह मंदिर श्री बद्रीनाथ धाम से 40 किलोमीटर की दूरी पर जोशीमठ में स्थित है। मान्यता है की इस मंदिर की नीव भी पांडवों ने अपने हाथों से रखी थी। अगर आप इस मंदिर के दर्शन नहीं करेंगे तो आपकी यात्रा अपूर्ण मानी जाएगी।Narsingh mandir badrinath

    तो यह थे बद्रीनाथ धाम के कुछ प्रसिद्ध और कुछ छिपे हुए मंदिर। अगर आपको हमारा ब्लॉग पसंद आया तोह कमेंट सेक्शन में जरूर बताइये क्युकी इस तरह की जानकारी इकठ्ठा करने में बहुत मेहनत लगती है।

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