Govind Dev Ji Temple Darshan Time, Time Table, History, Aarti, Adresss:- गुलाबी नगरी के नाम से प्रचलित ” जयपुर ” शहर में ऐसे तोह हज़ारों मंदिर है परन्तु उनमे से एक मंदिर ऐसा है ” गोविन्द देव जी का मंदिर ” जो की पुरे विश्व में प्रसिद्ध है। जिस मंदिर में ठाकुर जी के दर्शन मात्र हेतु आस पास से ही नहीं बल्कि दूर दूर से लोग आते है।
गोविन्द देव जी के प्रति जयपुर के लोगों की अनूठी श्रद्धा और विश्वास है जो की आपको प्रातः दर्शन के समय नजर आ जाएगी, क्युकी सुबह 4 बजे होने वाली मंगला आरती के लिए हज़ारों लोगों की भीड़ आपको सुबह ही नजर आ जाती है। गोविन्द देव जी की मंगला आरती के लिए लोग अपने घरो से 4 बजे ही निकल जाते है, ताकि ठाकुर जी के मनमोहक दर्शन कर सके।
गोविन्द देव जी मंदिर की स्थापना कैसे हुई? (Govind Dev Ji History)
यह मंदिर जयपुर के जलेबी चौक में स्थित है। यह मंदिर भगवान कृष्णा का जयपुर का सबसे प्रसिद्ध मंदिर है। यह चंद्र महल के पूर्व में बने जय निवास बगीचे के मध्य स्थित है। यह मंदिर जयपुर के बीचो बीच स्थित है। भगवान गोविन्द देव जी को जयपुर के हृदय देवता के रूप में भी माना जाता है। अभी जो आपको गोविन्द देव जी के मंदिर में मूर्ति दिखाई देती है यह मूर्ति पहले वृन्दावन में स्थापित थी, बाद में इस मूर्ति को सवाई जय सिंह द्वितीय ने अपने परिवार के देवता के रूप में पुनः स्थापित किया था। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है की महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय को सपने में आकर भगवान श्री कृष्णा ने आकर कहा की गोविन्द देव जी की मूर्ति को कुरुर मुग़ल सम्राट औरंगजेब द्वारा नष्ट होने से बचने के लिए अपने महल में स्थापित करो। तब महाराजा सवाई जय सिंह जी ने भवन गोविन्द देव जी की मूर्ति वृन्दावन से लाकर अपने सूर्य महल में स्थापित कर दी और अपने लिए चंद्र महल बनवाया। तब से गोविन्द देव जी का यह मंदिर जयपुर के शाही परिवार द्वारा स्थापित आस्था का केंद्र है।
कुछ लोग कहते है की श्री कृष्णा के प्रपोत्र और मथुरा के राजा वज्रनाभ जी ने अपनी माता से श्री कृष्ण की कथा सुनी। कथा में सुनी भगवान श्री कृष्णा के स्वरुप के आधार पर 3 मूर्तियों का निर्माण करवाया। इनमे से प्रथम है गोविन्द देव जी की मूर्ति, दूसरी मूर्ति है जयपुर के श्री गोपी नाथ जी की और तीसरी मूर्ति है श्री मदन मोहन करौली जी की। कहा जाता है की श्री गोविन्द देव जी का मुख मंडल, श्री गोपी नाथ जी का वक्ष मंडल यानि की शरीर और श्री मदन मोहन जी के चरण श्री कृष्णा के स्वरुप से मेल कहते है।
पहले यह तीनो मुर्तिया मथुरा में स्थापित थे परन्तु 11वी सदी के आरम्भ में मोहम्मद गजनवी के आक्रमण के भय से इन्हे जंगल में छुपा दिया गया था। 16 वी शताब्दी में चैतन्य महाप्रभु का प्रादुर्भाव हुआ, उन्होंने पाने शिष्यों को इन मूर्तियों को खोजने का आदेश दिया। तब महाप्रभु के शिष्यों ने इन्हे ढूंढ़कर मथुरा और वृन्दावन में पुनः स्थापित किया।
सन 1669 में मुग़ल शाशक औरंगजेब मथुरा के समस्त मंदिरो को नष्ट करवाने लगा तो गोरिय समुदाय के 3 पुजारी इन तीनो विग्रह को लेकर जयपुर गए और इन्हे जयपुर में ही स्थापित कर दिया। तब से गोविन्द देव जो जयपुर का शासक मन जाने लगा। गोविन्द देव जी मंदिर में जिस प्रतिमा के दर्शन आपको होते है वोह भगवान श्री कृष्ण ही है।
गोविन्द देव जी मंदिर की बनावट ( Govind Dev Ji Temple)
गोविन्द देव जी मंदिर बहुत साधारण रूप में बना हुआ है, जिसमे एक बड़ा हॉल है जिसमे छोटे छोटे खम्बे है। यह मंदिर लाल बलुआ पथरो और संगमरमर से बना है जो की वास्तु कला का एक अनूठा उदाहरण है। इस मंदिर को बनने में पुरे 5 वर्ष लगे थे। संगमरमर से बने इस मंदिर की वास्तु कला में राजस्थानी और शास्त्रीय भारतीय तत्वों का मिश्रण है। इस मंदिर का दर्शन हॉल इतना बड़ा है की यहाँ 5000 से कयदा लोग आसानी से बैठ सकते है। जन्मआष्ट्मी के दिन यहाँ लाखों की संख्या में भक्त आते है और मंदिर की समिति द्वारा अनेक धार्मिक कार्यक्रम समय समय पर आयोजित किये जाते है। मंदिर की छत सोने की बानी हुई है। साथ ही चंद्र महल से गोविन्द देव जी के सीधे दर्शन होते है। मंदिर में राधे कृष्णा की मूर्ति सोने के गहनों से सजी है, यह मूर्ति काले रंग की है।
गोविन्द देव जी मंदिर में आरती का समय (Govind Ji Time -Table)
इस मंदिर में मंगला आरती प्रातः काल 4:30 से लेकर 5:45 तक होती है, धुप आरती प्रातः काल 8:15 से 9:30 मिनट तक, श्रृंगार आरती 10:15 से 11 बजे तक, राजभोग आरती 11:45 मिनट से 12:15 मिनट दोपहर तक, गोपाल आरती सांय 5:30 से लेकर 6 बजे तक, संध्या आरती 6:30 मिनट से 7:45 मिनट तक और शयन आरती 8:15 से रात्रि के 9 : 15 मिनट तक का है। गोविन्द देव जी को हमेशा मोदक या लड्डू का प्रसाद चढ़ाया जाता है। गोविन्द देव जो को बहार की वास्तु का भोग नहीं चढ़ाया जाता है, बल्कि मंदिर से ही भक्तों को प्रसाद दिया जाता है। गोविन्द देव जी के प्रसाद को सौभाग्यवर्धक माना जाता है।
गोविन्द देव जी मंदिर जाने का सही समय
श्री द्गोविंद देव जी मंदिर जाने का अच्छा समय अक्टूबर से मार्च तक का है क्युकी ये मंदिर राजस्थान में स्थित है, साल के बाकी महीने यहाँ बहुत गर्मी रहती यह महीने ठन्डे रहते है और ठण्ड में घूमने से जल्दी थकान नहीं होती और आराम से घुमा जा सकता है इसलिए साल में इन्ही महीनो में जाने की कोशिश करे।
महाराजा सवाई जय सिंह जी ने एक चरण निकली थी ” गोविन्द देव जी चरण सवाई जय सिंह शरण ” जिसका मतलब है “में आपके चरणों में हु पूरा परिवार आपके चरणों में है आप यहाँ के राजा है और हम आपके दीवान है ” जिसके बारे में किसे को ज्ञात नहीं है। समस्त शाही परिवार कोई भी काम करने से पहले गोविन्द देव जी का ध्यान करते है।
शाही परिवार कौन कौनसी परम्परा निभाता है ?
सबसे पहले तो शाही परिवार कोई भी अचे काम करने से पहले गोविन्द देव जी का ध्यान करते है, उनकी आराधना करते है।
दूसरा जैसा सही परिवार गोविन्द देव जी को राजा के रूप में मानते है तो जो चंद्र महल के सबसे ऊपर जो झंडा लगता है वो गोविन्द देव जी का झंडा लगता है, उसके बाद महाराजा का झंडा लगता है।
शाही परिवार में कोई भी बड़ा काम करने से पहले गोविन्द देव जी को निमंत्रण दिया जाता है।
तीज और दिवाली को जो पोशाक गोविन्द देव जी को पहनाई जाती है समस्त शाही परिवार उसी रंग के कपडे धारण करता है।
गोविन्द जी का प्रसाद जिसे राज भोग कहा जाता है वोह रोज सुबह मंदिर से महल में पहुंचाया जाता है।
गोविन्द देव जी मंदिर का नाम गिन्नीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दो बार शामिल हो चूका है, जिसका पहला कारण है इसमें स्थापित एक सत्संग हॉल, जो की 119 फ़ीट का है जिसमे एक भी पिल्लर का स्तेमाल नहीं किया गया है। दूसरा वर्ल्ड रिकॉर्ड 30 जनवरी 2016 को गोविन्द देव जी के मंदिर में 21000 दिए जलाकर उन शहीदों को समर्पित किये गए जिन्होंने हमारी रक्षा के लिए अपने जीवन का बलिदान दे दिया था।
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